शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र की संस्कृति का संरक्षण, संवर्धन एवं हस्तान्तरण होता है। बालक एवं बालिका शिक्षा के माध्यम से ही अपने व्यक्तित्व का विकास करते हैं तथा राष्ट्रीय संस्कृति को ग्रहण करते हैं।
शिक्षा हमारे अन्तर्निहित अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर ज्ञान रूपी प्रकाश प्रज्जवलित करती है। यह व्यक्ति को सभ्य एवं सुसंस्कृत बनाने का एक सशक्त माध्यम है। यह हमारी अनुभूति एवं संवेदनशीलता को प्रबल करती है तथा वर्तमान एवं भविष्य के निर्माण का अनुपम स्रोत है। आज का मानव अपने मानवीय मूल्यों के प्रति विमुख हो चुका है। परम्परागत आदर्श समाप्त होते प्रतीत हो रहे हैं। हमारे आदर्श एवं विश्वास समाज में विलुप्त होते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में उचित शिक्षा ही हमारे मूल्यों को विकसित करने में सार्थक कदम उठा सकती है। शिक्षा हमारे वांछित शक्ति का विकास करती है। इसके आधार पर ही अनुसंधान और विकास को बल मिलता है। यह हमारी संवेदनशीलता और दृष्टि को प्रखर करती है। इससे वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है तथा समझ एवं चिन्तन में स्वतंत्रता आती है। एक प्रकार से शिक्षा राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता एवं मनुष्य के सर्वांगीण विकास की आधारशिला है।
अंधकार से प्रकाश की इस यात्रा पर सिर्फ बालकों का ही अधिकार नहीं हो सकता है। बालिकाओं को इस मार्ग पर चलने का प्रथम अधिकार होना चाहिए। इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि अपाला, गार्गी, सती सावित्री आदि जैसी आदर्श महिलाओं ने भारतीय समाज के समक्ष एक ऐसा अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है, जिसे भुलाया नहीं जा सकता।
किन्तु सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि स्त्री शिक्षा तथा सम्मान के प्रति इस हद तक जागृत रहे भारतीय समाज में, परकीय शासन के समय विभिन्न कारणों से स्त्रियों को शिक्षा देना अनावश्यक मान लिया गया था। फलस्वरुप वे अनेक प्रकार के अंधविश्वास, संस्कारों तथा सामाजिक रूढ़ियों से घिर गयीं। आज भी हमें एक लम्बी दूरी तय करना है एवं स्त्रियों को इस शिक्षा यज्ञ में सहयात्री बनाना है।
अतः अपने उक्त उद्देश्यों को लेकर अंधकार के विरुद्ध गोरखपुर नगर में एक दीप के रुप में 13 जुलाई 1964 को स्थापित यह विद्यालय आज विकास के विभिन्न सोपानों प्राथमिक विद्यालय, जूनियर हाई स्कूल, इंटर कालेज को पार करता हुआ स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय स्तर का होकर एक वृहद शिक्षण संस्थान के रुप में हम लोगों के बीच अवस्थित है।
वास्तव में विद्यालय की स्थापना के समय ही इस विद्या मन्दिर शिक्षण संस्थान ने स्त्री शिक्षा के जिस विशाल वट वृक्ष की कल्पना की थी वह महिला महाविद्यालय की स्थापना के रुप में साकार हो गयी। यह महाविद्यालय अल्प समय में ही उत्तम अध्ययन-अध्यापन, आदर्श अनुशासन, अत्यन्त शान्त वातावरण एवं उत्तम शैक्षिक क्रिया-कलापों के कारण पूर्वांचल में एक प्रतिष्ठित स्थान बना चुका है। विज्ञान संकाय के अन्तर्गत जीव विज्ञान वर्ग में स्नातक स्तर पर 1998-99 से बहनों को शिक्षा दी जा रही है। जिसका विगत वर्षों में परीक्षा फल उत्तम रहा है। विकास के क्रम में शैक्षिक सत्र 2004-05 से बी0काम0, सत्र 2007-08 से विज्ञान संकाय के अन्तर्गत स्नातकोत्तर स्तर पर प्राणी विज्ञान एवं वनस्पति विज्ञान एवं 2009-10 से बी0एस-सी0 होम साइंस में शिक्षा प्रदान की जा रही है। सत्र 2010-11 से राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् से मान्यता प्राप्त बी0एड0 की कक्षाएँ सुचारु रुप से चल रही हैं। भविष्य में इस महाविद्यालय में अन्य रोजगारपरक पाठ्यक्रमों की शिक्षा की योजना है। वर्तमान में सुदूर क्षेत्र से अध्ययन करने के लिए आने वाली छात्राओं को महानगर में रहने में हो रही असुविधाओं को देखते हुए संस्थान ने महिला छात्रावास प्रारम्भ किया है जिसमें कक्षा नवम् से ऊपर की कक्षाओं में अध्ययनरत छात्राओं हेतु परिसर में ही आवास की व्यवस्था है।
अतः इस महा शैक्षणिक परिवेश के निर्माण हेतु पूर्व की ही भाँति आपका स्नेह, सद्भाव, सहयोग, मार्गदर्शन प्राप्त होता रहेगा। इस भावना से हम आपके सहयोग एवं सुझाव सादर आमंत्रित करते हैं।